सीसीआई ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों पर कारोबारी नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना भी लगा चुकी है। श्वेत पत्र के मुताबिक ई-कॉमर्स कंपनियां बिक्री के दौरान कुछ चुनिंदा कंपनियों के उत्पादों पर प्लेटफॉर्म पर बिक्री में तरजीह देती है। बैंकों के साथ मिलकर कैशबैक के तहत विशेष छूट व अन्य माध्यम से खुदरा बाजार के मुकाबले काफी कम दाम में उत्पादों की बिक्री करती है जो कारोबारी नियमों के खिलाफ है।
राजीव कुमार, नई दिल्ली। गत 24 अगस्त को वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों की गैर प्रतिस्पर्धात्मक नीतियों की वजह से छोटे-छोटे खुदरा दुकानदारों की दुकानदारी चौपट हो रही है। ये कंपनियां इतनी कम कीमत पर उत्पादों को बेचती है जो खुदरा कारोबारियों के लिए संभव नहीं है। गोयल के इस बयान के बाद रिटेल दुकानदारों में एक उम्मीद जगी थी कि इस बार ई-कॉमर्स कंपनियों की तरफ से त्योहारी सीजन में लगाई जाने वाली जबरदस्त छूट वाली सेल से पहले सरकार ई-कॉमर्स नीति ले आएगी।
ई-कॉमर्स नीति का इंतजार
इससे उनकी ई-कॉमर्स कंपनियों पर अंकुश लगेगा और उन्हें भी त्योहार में कारोबार बढ़ाने का मौका मिलेगा। लेकिन देश में काम करने वाली दो सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां Amazon और Flipkart की हर साल की तरह इस साल भी बिग बिलियन सेल या त्योहारी बिक्री चालू हो गई है जिसके तहत मोबाइल फोन व अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के साथ बाइक तक की बिक्री की भारी छूट के साथ की जा रही है। मंगलवार को कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) और ऑल इंडिया मोबाइल रिटेलर्स एसोसिएशन (एमरा) ने एक बार फिर से खुदरा व्यापारी व उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए जल्द से जल्द ई-कॉमर्स नीति की घोषणा की मांग की।
भारी छूट पर लगेगी लगाम
ताकि उपभोक्ता वस्तुओं को भारी छूट के साथ बेचने पर रोक लगाई जा सके। दोनों ही एसोसिएशन की तरफ से ई-कामर्स कंपनियों पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की जांच रिपोर्ट के आधार पर एक श्वेत पत्र जारी किया गया। सीसीआई ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों पर कारोबारी नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना भी लगा चुकी है।श्वेत पत्र के मुताबिक ई-कॉमर्स कंपनियां बिक्री के दौरान कुछ चुनिंदा कंपनियों के उत्पादों पर प्लेटफॉर्म पर बिक्री में तरजीह देती है।
बैंकों के साथ मिलकर कैशबैक के तहत विशेष छूट व अन्य माध्यम से खुदरा बाजार के मुकाबले काफी कम दाम में उत्पादों की बिक्री करती है, जो कारोबारी नियमों के खिलाफ है। हालांकि इससे उपभोक्ताओं को फायदा होता है।
दूसरी तरफ, पिछले चार साल से भी अधिक समय से उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ई-कॉमर्स नियम बनाने में जुटा है, लेकिन इसकी घोषणा नहीं की जा सकी है। डीपीआइआइटी सूत्रों के मुताबिक ई-कॉमर्स नीति तैयार है। इस साल जून में सरकार गठन से पहले ही गोयल खुद कह चुके हैं कि ई-कॉमर्स नीति की घोषणा वे जल्द ही करेंगे।
उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसी ई-कॉमर्स नीति लाएंगे जो खुदरा व्यापारियों को भी कारोबार का समान अवसर देगा। अभी देश के खुदरा कारोबार में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी आठ प्रतिशत है जो वर्ष 2030 तक 27 प्रतिशत होने का अनुमान है।
विभिन्न एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक ई-कॉमर्स की वजह से ऑफलाइन खुदरा कारोबारी खासकर मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के कारोबार में 10 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। जानकारों के मुताबिक ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए किसी नीति और नियामक के अभाव में उन पर कारोबारी नियम प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाता है। ये कंपनियां करोड़ों उपभोक्ताओं के डाटा को भी इकट्ठा करती है और उसका अपने हिसाब से उपयोग कर सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी नीति और नियामक के अभाव का फायदा ई-कॉमर्स कंपनियां उठा रही है। नीति निर्धारण के बाद वे एक नियम के तहत व्यापार करने के लिए विवश होंगी।